एक ही दिन में !

मुझे आज भी याद है वह दिन जो अपने आपमें मेरे लिए तीन तीन आश्चर्य ले कर आया| उन दिनों में कठिन दौर से गुजर रहा था| एक बहुत ही अच्छी जॉब छोड़ कर मैंने जीवन बिमा की नौकरी कर ली थी | थोड़े ही दिनों में मुझे मेरी गलती का एहसास हो गया था | लेकिन देर हो गई थी | जॉब मेरी प्रकृति के विरूद्ध का था |

शुरुआत की सफलता के बावजूद मुझे मालुम हो गया था की जिस में मेरी प्रकृति साथ न हो उसमे में सफल हो गया तो भी में खुश नहीं रह सकता | एक असमंजस में था और मुझे तय करना था की आगे क्या करना ? उन दिनों भरूच शहर में एक अच्छे ज्योतिषी (पियूष दवे- गणेश उपासक )थे| में चला गया ज्योतिष सलाह पाने के लिए | कुछ ही मिनिट में ज्योतिष महोदय ने मेरे हाथ में एक चिठी पकड़ा दी जिसमे लिखा था ‘दिवाली से पहले, दक्षिण दिशा में, ‘ग’, ‘स’ या ‘श’ अक्षर से जिसका नाम शुरू होता हो ऐसे शहर में मुझे बैंक से भी अच्छी नौकरी मिलेगी. इसके लिए मुझे ७५१ रूपये मूल्य का गणेश तावीज लेना होगा”. चूँकि उन दिनों ७५१ रुपये एक बड़ी राशि हुआ करती थी, मेने तावीज तो नहीं लिया|

ज्योतिष के कार्यालय से निकल कर भरूच से अंकलेश्वर जाने के लिए में एक शटल रिक्शा में बेठा| मेरे अलावा इस में और दो पेसंजर पहले से ही सवार थे| वे दोनो आन्ध्र प्रदेश के जड़ी बूटी बेचनेवाले थे| जिज्ञासा वश मेने उनको पूछ ही लिया की क्या वो फेस रीडिंग भी जानते है? मुझे टालने के अंदाज में उन मेसे एक ने बताया की वो अभी कुछ नहीं बता सकते क्योंकि इसके लिए उन्हें सुबह स्नान आदि करके कुछ पूजा वगैरे भी करनी होती है| कुछ समय बाद उनमें से एक ने मुझे बताया की में अछी नोकरी को ठोकर मार कर आया हूँ और काफी तकलीफ उठा चूका हूँ | अब बुरा समय खतम होने को हैं और मुझे फिर अच्छी नौकरी मिल जाएगी |

रिक्शे से उतरते वक्त मेने उनको दो रूपये देना चाहा तो उन्होंने यह कह कर उसे स्वीकार नहीं किया की उस वक्त दो रूपये उनसे ज्यादा मेरे लिए ज्यादा मायने रखते थे|

रिक्शे से उतर कर मैंने कच्चे रस्ते से अंदाडा गाँव की तरफ चलना शुरू किया| कुच्छ ही पलों में एक और रिक्शा वहाँ रुका और उसमें से एक भाई उतरकर उसी रस्ते आ रहेथे| में कुछ कदम धीरे चल कर उसके साथ हो गया| ग्रामीण एजेंसी देने के विचार से में उससे बात करने लगा| पता चला की वो भाई पेशे से शिक्षक थे और अपने रिक्त समय में गाँव के ‘बाला-पीर’ के स्थानक पर बेठकर मुसीबत में लोगो का उपाय व् मार्गदर्शन करते थे| मैंने जब उनसे पूछा की पता कैसे चलता है की बाला-पीर की हाजरी है? उन्होंने बताया की जब बाला-पीर आते है तो खुशबु आती है|

चलते चलते बाते चलती रही| जब मेरे सवाल से मुझे उत्तर नहीं मिला तो मेने देखा की वह तो पीछे रह गया था| हवा में अगरबत्ती की खुशबु आने लगी थी और एक जगह खड़े खड़े वह भाई तो अभवाने लगा था| थोड़ी हिम्मत जुटा के में उनके पास गया | उन्होंने भी मुझे अपने बारे में वही बात बताई जो मैं पिछले एक घंटे में दो बार सुन चूका था| उन्होंने भी बताया की मेरा मुश्किल वक्त जल्द ही खत्म होने वाला है|

आगे जाके सन १९८२ के जून महीने में मुझे सूरत में (जो अंकलेश्व से दक्षिण में स्थित है) बहोत अच्छी नोकरी मिली| जब में सुखी हुआ, मुझे वो दिन याद आ गया जब एक ही दिन में मुझे तीन तीन बार भविष्य दर्शन का अनुभव हुआ| इस घटना से मुझे ज्योतिष सिखने की प्रेरणा मिली|

योगानुयोग, मेरे मामा कुछ महीने मेरे साथ रहने आए जो खुद ज्योतिष के अच्छे जानकार थे| ज्योतिष की प्रारंभिक शिक्षा मैंने मेरे मामा से प्राप्त की | फिर तो मेरी दिलचश्पी काफी बढ़ी | ज्योतिष की कई पुस्तक मैंने पढ़ी | गुजराती में नक्षत्र ज्योतिष के विद्वान लेखक श्री चंद्रकांत रत्नेश्वर भट्ट की कई पुस्तको का मैंने गहन अभ्यास किया| में उनसे दो या तिन बार उनके अहमदाबाद स्थित घर पर मिला भी| उन्होंने मेरी रूचि और जिज्ञासा की अच्छी प्रसंशा की|

ऐसे शुरू हुई मेरी ज्योतिष अभ्यास यात्रा |